An epic movie with extra-ordinary direction, acting, songs, background music - simply everything. But technicalities apart, there are some unforgettable lines throughout the movie bursting with patriotic and nationalist feelings, which keep me pumped up. Recounting some of them here.
"अब भी जिसका खून न खौला, खून नहीं वो पानी है
जो देश के काम न आये, वो बेकार जवानी है."
"I always believed there were two kinds of men in this world, men who go to their deaths screaming, and men who go to their deaths in silence. Then I met a third kind."
"कोई भी देश perfect नहीं होता, उसे perfect बनाना पड़ता है. पुलिस में भर्ती होंगे, military join करेंगे, IAS बनेंगे, politics का हिस्सा बनकर इस देश की सरकार चलाएंगे. ये देश बदलेगा, हम बदलेंगे इसे."
"जिंदगी जीने के दो ही तरीके होते हैं. एक - जो हो रहा है, होने दो; बर्दाश्त करते जाओ. या फिर, ज़िम्मेदारी उठाओ उसे बदलने की."
So, in case someone has given up on India feeling that the future is dark, stop and think again; for each one of us can make a difference, and together we can do a lot more.
Signing off with a poem, every line of which is a quote in itself:
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है,
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर।
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हाथ, जिनमें है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
हम तो निकले ही थे घर से बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम।
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज।
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
जिस्म वो क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
'rang de basanti'definitely has a brilliantly executed story line - its inspiring and thought provoking at the same time. And its very interesting to experience the end dilemma which the writer puts the audience into through the end scene. i mean the unending debate about the righteousness or wrongfulness of a particular act(here ofcourse the killing of the minister) and the never ending argument of violence vs. non-violenece.
ReplyDeletesomehow the movie stops us from making a generalised conclusion. so, though it would have satisfied so many of us when the minister was shot dead as our general tendency to root out corruption seems to be so (kab tak jhelenge saare corrupt ministers ko goli maar dena chahiye kind of lines is something we hear all the time).
yet, in the end the direrctor do show us that the chracters were actually sorry about killing the minister-reaosn why they thought about confessing the crime. yet by sort of showing the legitimacy and hence superiority of state's power to use violence indiscriminately -in killing all the people, the director draws a lot of sympathy from the audience for the charcters killed and in the process immortalised them forever somewhat like freedom fighters.
thus, at the end we are kind of confused as to what or better who is right?(may be truth need to be seen in layers).But we do need to figure as to who now is the " bazooye kaatil". if it is the indian state then whom do we want to fight for? how much is it possible for us to really distinguish between the india we would want to die for and indian government whose corruption tendencies we would want to oppose/and which comes down heavily on non-violent protestors at india gate,like it is shown in the movie. And hence the dilemma- joining civils, police services- of whether we will end up serving the state or the people in the true sense. i mean it should be no wonder that bureaucracy is the most inefficient institutions of the country. corruption being more rampant in it than anywhere else.